Ladli Behna Update: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को एक गंभीर चेतावनी दी है। अदालत ने कहा है कि अगर राज्य सरकार एक निजी पक्ष को उचित मुआवजा नहीं देती है, तो वह राज्य की सभी मुफ्त योजनाओं को रोक सकती है। यह मामला एक ऐसी जमीन से जुड़ा है, जिस पर राज्य सरकार ने लगभग 60 साल पहले अवैध रूप से कब्जा कर लिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
1. जमीन का अवैध अधिग्रहण: महाराष्ट्र सरकार ने करीब 60 साल पहले एक निजी व्यक्ति की जमीन पर बिना उचित प्रक्रिया के कब्जा कर लिया था।
2. जमीन का उपयोग: इस जमीन को बाद में अर्मामेंट रिसर्च डेवलपमेंट इस्टेब्लिशमेंट इंस्टीट्यूट (ARDEI) को दे दिया गया।
3. कानूनी लड़ाई: जमीन के मालिक ने अपनी जमीन वापस पाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट तक में जीत हासिल की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
1. मुआवजे की राशि पर विवाद: राज्य सरकार 37.42 करोड़ रुपये मुआवजा देना चाहती है, जबकि जमीन मालिक 317 करोड़ रुपये की मांग कर रहा है।
2. राज्य की प्राथमिकताओं पर सवाल: अदालत ने कहा कि राज्य के पास मुफ्त योजनाओं के लिए हजारों करोड़ रुपये हैं, लेकिन वैध मुआवजा देने के लिए पैसे नहीं हैं।
3. आदर्श राज्य का व्यवहार नहीं: कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र का आचरण एक ‘आदर्श राज्य’ जैसा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
1. तीन सप्ताह का समय: अदालत ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है ताकि वह एक उचित मुआवजा प्रस्ताव तैयार कर सके।
2. मुफ्त योजनाओं पर रोक: इस दौरान, राज्य कोई नई मुफ्त योजना शुरू नहीं कर सकता।
3. ‘लाडली बहिन’ और ‘लड़का भाऊ’ योजनाएं प्रभावित: ये दो प्रमुख योजनाएं इस आदेश से प्रभावित हो सकती हैं।
प्रभावित हो सकने वाली योजनाएं
1. मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना: इस योजना के तहत, 21-65 वर्ष की पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक दिए जाते हैं।
2. लड़का भाऊ योजना: यह योजना युवाओं को वित्तीय सहायता और कार्य अनुभव प्रदान करती है।
राज्य सरकार का पक्ष
1. समय की मांग: राज्य के वकील ने तीन सप्ताह का समय मांगा है ताकि वे उच्च स्तर पर इस मामले पर विचार कर सकें।
2. मुआवजे की गणना: राज्य ने कहा कि ‘रेडी रेकनर’ के आधार पर मुआवजे की गणना की जानी चाहिए।
आगे की कार्रवाई
1. अगली सुनवाई: मामले की अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
2. राज्य का हलफनामा: राज्य सरकार अगली सुनवाई से पहले एक हलफनामा दाखिल कर सकती है।
3. कड़े निर्देश की चेतावनी: अदालत ने चेतावनी दी है कि अगर राज्य उचित प्रस्ताव नहीं लाता, तो वह कड़े निर्देश जारी कर सकती है।
यह मामला राज्य सरकारों की जवाबदेही और नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम बताता है कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं, चाहे वह एक आम नागरिक हो या फिर राज्य सरकार। यह फैसला राज्य सरकारों को यह संदेश देता है कि वे अपने नागरिकों के अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकतीं और उन्हें अपने कार्यों के लिए जवाबदेह होना होगा। साथ ही, यह निर्णय लोकलुभावन योजनाओं और नागरिकों के वैध अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।
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